तेंदूपत्ता तस्करी का भंडाफोड़: ओडिशा से छत्तीसगढ़ खपाने की कोशिश नाकाम, 110 बोरी जब्त…

गरियाबंद : 04 मई 2025 (संवाददाता )

छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर तेंदूपत्ता तस्करी का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। ओडिशा के कालाहांडी जिले के धर्मगढ़ रेंज अंतर्गत बडकेंदुगुड़ा के पास शुक्रवार शाम ग्रामीणों ने एक मेटाडोर को रोका, जिसमें सूखा तेंदूपत्ता भरा हुआ था। स्थानीय लोगों की सतर्कता से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और वाहन समेत 110 बोरी तेंदूपत्ता जब्त कर लिया गया। हालांकि, मेटाडोर चालक मौके से फरार हो गया, जबकि हेल्पर को हिरासत में लेकर पूछताछ जारी है।

मेटाडोर (CG 04 JD 3319) छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में पंजीकृत है और इसे देवभोग रेंज के सीमावर्ती फड़ में तेंदूपत्ता की एंट्री कराने लाया जा रहा था। रेंजर भवानी कुंअर ने मीडिया को बताया कि वाहन में कोई वैध दस्तावेज नहीं मिले हैं। प्रारंभिक जांच में हेल्पर ने पत्ता देवभोग रेंज ले जाने की बात कही है। वन विभाग द्वारा मामले की विस्तृत जांच की जा रही है और आवश्यक कार्रवाई के उपरांत मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा। जांच के दौरान वाहन से पीपलझापर ग्राम पंचायत का एक प्रस्ताव पत्र मिला, जिसमें पंचायत की सर्वसम्मति से पत्ता देवभोग रेंज समिति को देने का उल्लेख है। इस पत्र की प्रामाणिकता और भूमिका की भी जांच की जा रही है। अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जब्त किया गया तेंदूपत्ता किसके आदेश पर और किस उद्देश्य से छत्तीसगढ़ ले जाया जा रहा था।

सूत्रों के अनुसार, यह तेंदूपत्ता पहले से संग्राहक के खाते में खरीदी दिखाकर दर्ज कर दिया गया था, जिससे यह अवैध परिवहन वैध दिखे। आशंका जताई जा रही है कि स्थानीय लघु वनोपज संस्थान के कुछ प्रभावशाली अधिकारी, जो पड़ोसी राज्य से संबंध रखते हैं, इस सिंडिकेट का हिस्सा हैं और स्थानीय प्रशासन से मिलीभगत कर इस धंधे को अंजाम दे रहे हैं।

सबसे गंभीर बात यह है कि देवभोग रेंज के अधिकारी कार्रवाई के 20 घंटे बाद भी मामले से अनभिज्ञ बने हुए हैं, जिससे विभागीय सतर्कता पर सवाल उठते हैं। झाखरपारा समिति द्वारा पत्ते की खरीदी के चार दिन बाद तक की जानकारी भी वन विभाग नहीं दे पाया है। तेंदूपत्ता, जो ओडिशा में एक से डेढ़ लाख रुपये में उपलब्ध है, वही पत्ता यदि छत्तीसगढ़ के फड़ों में खप जाता तो सरकार को 4 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करना पड़ता। इससे राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही बिचौलियों और सिंडिकेट को भारी मुनाफा होता।

इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर तेंदूपत्ता तस्करी एक सुनियोजित साजिश है, जिसमें स्थानीय प्रशासन, पंचायतें और वनोपज संस्थान के अधिकारी भी संलिप्त हो सकते हैं। अब देखना यह होगा कि वन विभाग इस मामले की तह तक जाकर दोषियों के विरुद्ध क्या ठोस कदम उठाता है।

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