ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विफलता और गिरती लोकप्रियता: प्रोफेसर राजन कुमार का विश्लेषण

रायपुर : 30 मई 2025

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर तीखी चर्चाएं होती रही हैं। ट्रंप की नीतियों और उनके तौर-तरीकों को लेकर जहां एक तरफ उनके समर्थक उन्हें “डील मेकर” और “अमेरिकन इंटरेस्ट का सच्चा रक्षक” मानते हैं, वहीं दूसरी तरफ विशेषज्ञ और आलोचक उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बारीक समझ से दूर एक कारोबारी दिमाग वाला नेता करार देते हैं। इसी संदर्भ में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर राजन कुमार का विश्लेषण ट्रंप की असफलताओं और उनके गिरते प्रभाव पर रोशनी डालता है।

वादों का दिखावा और ज़मीनी हकीकत:

राजन कुमार के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान ऐसे वादों की भरमार कर दी थी, जिनका पूरा होना बेहद कठिन था। उन्होंने अमेरिकी जनता से ऐसे सपने दिखाए, जो राजनीतिक हकीकतों से कोसों दूर थे। प्रोफेसर कुमार कहते हैं, “ट्रंप ने चुनावी समय में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वादे किए थे और वह खुद भी जानते थे कि यह पूरे नहीं हो सकते।”

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है—मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाना, व्यापार समझौतों को तोड़ना, चीन के खिलाफ कठोर कदम उठाना, और अमेरिका को “फर्स्ट” नीति के तहत बाकी देशों से अलग-थलग कर देना। लेकिन इन वादों की व्यवहारिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक था। अंतरराष्ट्रीय संबंध केवल लेन-देन या सौदेबाज़ी नहीं, बल्कि दीर्घकालिक समझ और कूटनीतिक रणनीतियों पर आधारित होते हैं। ट्रंप ने इस बुनियादी सच्चाई को नज़रअंदाज़ किया।

व्यापारी की मानसिकता से अंतरराष्ट्रीय रिश्ते:

प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को “बिजनेस डील” की तरह देखा। वे हर देश के साथ सौदेबाज़ी की कोशिश करते रहे और यह मानते रहे कि आर्थिक दबाव डालकर वे अपनी शर्तें मनवा लेंगे।

“ट्रंप को इंटरनेशनल पॉलिटिक्स की समझ नहीं है। वह दो देशों के रिश्तों को डील की नजर से देखते हैं और हर जगह बिजनेसमैन वाला दिमाग इस्तेमाल करते हैं,” — यह टिप्पणी ट्रंप की सीमित दृष्टिकोण को उजागर करती है।

ट्रंप ने कई बार नाटो (NATO) देशों पर वित्तीय बोझ डालने की बात कही, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से संबंध तोड़ने की धमकी दी, और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर पीछे हटने की नीति अपनाई। इन कदमों ने अमेरिका की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाया और अमेरिका को विश्व नेतृत्व की भूमिका से दूर कर दिया।

फेल होती स्ट्रैटजी और टूटते रिश्ते:

ट्रंप की विदेश नीति की रणनीतियाँ लंबे समय तक टिक नहीं पाईं। उनके कई दावों और दबावों के बावजूद चीन ने झुकने के बजाय जवाबी कार्रवाई की। ईरान के साथ संबंध बिगड़ते गए और यूरोपीय देशों के साथ भी मतभेद बढ़े। प्रोफेसर कुमार कहते हैं, “ट्रंप का मानना है कि वे डील करके किसी भी देश को अपने आगे झुका लेंगे और अपनी शर्तें मनवा लेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ट्रंप की स्ट्रैटजी फेल होती नजर आ रही हैं।”

ट्रंप की रणनीतियों की असफलता का ताजा उदाहरण टेस्ला के मालिक एलन मस्क का उनसे किनारा करना भी है। ट्रंप और मस्क की दोस्ती किसी समय चर्चा में थी, लेकिन अब मस्क का समर्थन भी उनसे दूर होता दिख रहा है, जो ट्रंप की गिरती साख का प्रतीक है।

देश के भीतर भी नाराजगी और विरोध:

ट्रंप की नीतियाँ केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि घरेलू मोर्चे पर भी विवादास्पद रहीं। उनके कार्यकाल में नस्लीय तनाव, सामाजिक विभाजन और विश्वविद्यालयों में असंतोष चरम पर पहुंच गया। प्रोफेसर राजन कुमार इस पर कहते हैं, “ट्रंप दिखावा करना चाहते हैं कि वे सबसे ताकतवर देश के ताकतवर राष्ट्रपति हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी नीतियों की वजह से देश के अंदर ही नाराजगी पनप रही है। इसका ताजा उदाहरण यूनिवर्सिटीज के फंड को रोकना और इस पर लोगों का प्रदर्शन करना है।” ट्रंप की शरणार्थी नीति, मुस्लिम बैन, और छात्र वीजा से जुड़ी नीतियों ने भी शिक्षा जगत में असंतोष को जन्म दिया। अमेरिका की विश्वविद्यालय प्रणाली, जो विश्व में सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है, ट्रंप की नीतियों से खुद को असहज महसूस करने लगी।

लोकप्रियता में गिरावट और भविष्य की अनिश्चितता:

डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता में हाल के वर्षों में स्पष्ट गिरावट आई है। जब वे 2016 में राष्ट्रपति बने, तो उन्हें आम अमेरिकियों के बीच एक “बाहरी” नेता के रूप में देखा गया, जो सिस्टम को झकझोर सकता है। लेकिन कार्यकाल के अंत तक उनके समर्थन में कमी आती गई। प्रोफेसर कुमार का मानना है कि ट्रंप का कार्यकाल पूरा तो होगा, लेकिन उनके निर्णयों और रवैये ने उन्हें जनमानस में अलोकप्रिय बना दिया है। “वे 4 साल का कार्यकाल तो पूरा कर ही लेंगे, लेकिन उनकी पॉलिसीज नेशनल लेवल पर कामयाब होती नजर नहीं आ रहीं। अगर वे अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करें, तो भी बहुत ज्यादा वक्त लगेगा।”इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप अब पहले जैसे लोकप्रिय नहीं रहे। उनकी छवि को उनके ही बयानों और निर्णयों ने नुकसान पहुंचाया है।

एक व्यापारी बनाम एक राजनेता

डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति को लेकर यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने एक राजनेता से अधिक एक व्यापारी की भूमिका निभाने की कोशिश की। उनकी कार्यशैली, फैसले और विदेश नीति में लेन-देन की भावना अधिक दिखी, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर विफल साबित होती है।

प्रोफेसर राजन कुमार का विश्लेषण इस बात की ओर इशारा करता है कि जब एक देश का नेता वैश्विक कूटनीति को केवल सौदेबाज़ी के चश्मे से देखता है, तो अंततः वह खुद को अलग-थलग कर लेता है। ट्रंप की राजनीति ने अमेरिका की परंपरागत भूमिका को कमजोर किया और उनकी गिरती लोकप्रियता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

ट्रंप भले ही 2024 के चुनाव में फिर से किस्मत आजमाएं, लेकिन यह साफ है कि उन्हें पहले जैसी स्वीकार्यता और समर्थन अब शायद ही मिले। उनका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपने दृष्टिकोण में कितना बदलाव लाते हैं—वरना इतिहास उन्हें एक विघटनकारी नेता के रूप में ही याद रखेगा।

स्वतंत्र छत्तीसगढ़ की रिपोर्ट

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