रायपुर : 07 जून 2025
नवा रायपुर के अंतिम छोर पर बसा नकटी गांव इन दिनों भारी संकट में है। चार दशकों से अधिक समय से बसे इस गांव को प्रशासन ने अतिक्रमण बताकर उजाड़ने का अल्टीमेटम दे दिया है। मकसद – विधायकों और सांसदों के लिए आलीशान बंगले बनाना।
40 साल पुराना गांव अचानक “अवैध” कैसे हो गया?
करीब 85 परिवारों वाले नकटी गांव में लगभग 300 लोग रहते हैं। इन लोगों ने चारागाह की जमीन पर धीरे-धीरे बस्ती बसाई, जिसे अब गांव का “एक्सटेंशन” माना जाता है। असल नकटी गांव के मूल निवासियों के परिजन ही इस विस्तार में घर बनाकर रहने लगे। समय के साथ जब गांव की आबादी बढ़ी, तो सरकार ने यहां बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं दीं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान बनाने के लिए पैसे भी दिए गए। अभी तक 18 से अधिक पक्के मकान बन चुके हैं। लेकिन अब वही सरकार कह रही है कि ये निर्माण अवैध हैं। सवाल उठता है – जब प्रशासन ने खुद यहां सुविधाएं दीं, योजनाओं का लाभ दिया, तो अब इन्हें अवैध कैसे ठहराया जा रहा है?
धरने पर बैठा गांव: “पुरखों की जमीन नहीं छोड़ेंगे”
17 अप्रैल को तहसीलदार ने नोटिस भेजा – 28 अप्रैल तक मकान खाली करो। इसके बाद गांव की महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे 20 अप्रैल से लगातार धरने पर बैठे हैं। “हम पुरखों की जगह नहीं छोड़ेंगे, जो हटाएगा उसे डंटे से पीटेंगे”, गांववालों की एकता और आक्रोश को दर्शाता नारा है। गांव के सरपंच बिहारी लाल यादव ने कहा, “जब सरकार ने हमें बिजली, पानी, सड़क और आवास की सुविधा दी, तो अब हमारा गांव कैसे अवैध हो गया?” गांव की बुजुर्ग महिला चमेली साहू और 70 वर्षीया रामबाई की पीड़ा यही है – “इस उम्र में हम कहां जाएंगे? यही तो हमारा जीवन भर का ठिकाना है।”
क्यों चाहिए नकटी गांव की जमीन माननीयों को?
असल कारण है – लोकेशन। राजधानी से लगे इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति मुफीद है। एयरपोर्ट नजदीक है। आसपास की जमीनें भी अब महंगी होती जा रही हैं। गांव के आसपास बड़े-बड़े चक खरीदने वालों की नजरें अब इस जमीन पर हैं, क्योंकि जैसे ही विधायक-सांसद कॉलोनी बसती है, इन जमीनों की कीमत पांच से दस गुना बढ़ जाएगी। यही कारण है कि नकटी गांव के गरीबों को उजाड़कर, प्रभावशाली लोगों को फायदा पहुंचाने की तैयारी हो रही है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और विरोध की कहानी
21 मार्च 2025 को छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में विधायक धर्मजीत सिंह के सवाल के जवाब में राजस्व मंत्री टंक राम वर्मा ने पहली बार आधिकारिक रूप से इस योजना का जिक्र किया – “नवा रायपुर के नकटी गांव में विधायकों-सांसदों के लिए जमीन देखी जा रही है।” इसके कुछ ही दिन बाद ग्रामीणों को नोटिस जारी हुआ। लेकिन यह कोई नई योजना नहीं है। एक दशक से यह प्रस्ताव चलता आ रहा है। पहले भी इसे स्थगित किया गया था, और सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने ग्रामीणों के पक्ष में आकर तब भी इसका विरोध किया था।
इस बार भी सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने साफ कहा है – “किसी का घर नहीं उजड़ेगा। मैं ग्रामीणों के साथ हूं।” लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई और नोटिस जारी होने से गांव में भय और तनाव लगातार बना हुआ है।
विधायक और सांसदों के पास पहले से मौजूद आवास
राजधानी रायपुर में पहले से ही विधायक और सांसदों के रहने के लिए कई सुविधाएं हैं:
- रिंग रोड पर मेग्नेटो मॉल के सामने विधायक कॉलोनी
- राजेंद्र नगर में विधायक विश्राम गृह
- सिविल लाइन में सर्वसुविधायुक्त विश्रामगृह
इसके बावजूद एक और कॉलोनी बसाने की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है? इस सवाल का जवाब केवल राजनीतिक और आर्थिक हितों में छिपा है।
ग्रामीणों की मांग और सवाल
- जब सरकार ने सुविधाएं दीं, तो अब अवैध कैसे हुआ?
- प्रधानमंत्री आवास की मंजूरी के बाद भी मकान तोड़े जा रहे हैं, तो यह अन्याय नहीं तो क्या है?
- क्या गरीबों का जीवन, उनका बसेरा, किसी योजना या प्रस्ताव से कमतर है?
ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है – “हमें हटाया न जाए। हमें वैकल्पिक व्यवस्था नहीं चाहिए, क्योंकि हम अपनी ही ज़मीन पर रह रहे हैं।”
नकटी गांव का यह संघर्ष केवल जमीन का मामला नहीं है। यह सवाल है – गरीब बनाम प्रभावशाली, स्थानीय बनाम सत्ता, और विकास बनाम विस्थापन का। सरकार यदि संवेदनशील है, तो उसे विकास और मानवीयता के बीच संतुलन बनाना होगा। अगर सत्ता के गलियारों में बैठे लोग सचमुच जन प्रतिनिधि हैं, तो उन्हें यह तय करना होगा कि उनका विकास किसी का घर उजाड़कर नहीं, बल्कि साथ लेकर होना चाहिए। वरना नकटी गांव एक प्रतीक बन जाएगा – उस विकास का, जो गरीबों के आशियाने रौंदकर आता है।
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