कोण्डागांव, 7 जून 2025
“जनता की सेवा नहीं, जेब भरना बना मकसद” — यह कहावत एक बार फिर सच साबित हुई जब कोण्डागांव जिले के नजूल शाखा में पदस्थ तहसीलदार दिनेश सिंह ठाकुर को 15,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। यह कार्रवाई एफटी करप्शन ब्यूरो द्वारा योजनाबद्ध तरीके से की गई, जिसने जिलेभर के प्रशासनिक तंत्र में हलचल मचा दी है।
जनता के साहस ने खोली भ्रष्टाचार की परतें
इस पूरे प्रकरण की शुरुआत शिकायतकर्ता राधाकृष्ण देवांगन द्वारा की गई शिकायत से हुई। उन्होंने बताया कि उनकी पुश्तैनी जमीन पर अवैध कब्जा हटाने और सीमांकन के लिए तहसीलदार ने 15 हजार रुपये की घूस मांगी थी।
राधाकृष्ण ने घूस देने के बजाय साहसिक कदम उठाते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की, जिसके बाद रिश्वतखोरी की यह कहानी सार्वजनिक हो सकी।
न्याय की जिम्मेदारी निभाने वाले अफसर बना अन्याय का सौदागर
यह घटना केवल एक व्यक्ति विशेष की नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़ांध की तस्वीर पेश करती है। जिस अफसर को न्याय का प्रतिनिधि माना गया था, वही न्याय को ‘बाजारू सौदा’ बना बैठा था। कार्यालय में ईमानदारी की बातें करने वाला तहसीलदार, अंदरखाने जेब भरने में व्यस्त था।
क्या आदिवासी जिलों में न्याय अब भी बिकाऊ है?
कोण्डागांव जैसे आदिवासी और पिछड़े जिले में इस तरह की घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या आज भी न्याय पैसे से खरीदा जाता है?
क्या सरकारी मशीनरी में संवेदनशीलता और जवाबदेही अब महज़ शब्द भर रह गए हैं?
जनता की मांग: सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, सख्त सजा
इस घटनाक्रम के बाद जनता में भारी आक्रोश है। लोगों की मांग है कि सिर्फ गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि तहसीलदार के निलंबन, विभागीय जांच, और सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए — ताकि यह एक उदाहरण बने और बाकी भ्रष्ट अधिकारियों को भी सबक मिले।
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