रायपुर: 07 जून 2025 (भुषण)
लोकतंत्र की बुनियाद न्याय और समानता पर टिकी होती है। जब यह बुनियाद हिलने लगती है और न्याय का पलड़ा व्यक्ति की पहचान, प्रभाव या लोकप्रियता के आधार पर झुकने लगे, तब सवाल उठता है कि क्या हम सचमुच एक समान कानून वाले राष्ट्र में जी रहे हैं? हाल ही की दो घटनाएं इस असमानता को उजागर करती हैं — एक तरफ फिल्म अभिनेता अल्लू अर्जुन और दूसरी तरफ भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली से जुड़ी घटनाएं।
कुछ दिन पहले अल्लू अर्जुन की फिल्म के प्रचार के दौरान भारी भीड़ के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई। सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए अभिनेता को हिरासत में लिया और आयोजकों पर भी सख्ती दिखाई। यह कार्रवाई दिखाती है कि सरकार भीड़ से हुई एक मौत को गंभीरता से लेती है — और लेनी भी चाहिए। लेकिन सवाल तब खड़ा होता है जब ठीक इसके कुछ दिन बाद विराट कोहली के मैच में जीत के जश्न में मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो जाती है, और सरकार पूरी तरह चुप्पी साध लेती है।
क्या इसलिए कि विराट कोहली देश के सबसे बड़े खेल सितारों में से एक हैं? क्या न्याय अब इस बात पर निर्भर करेगा कि मौत किसके आयोजन में हुई? एक मौत पर सख्त कार्रवाई और 11 मौतों पर मौन – यह स्थिति लोकतंत्र और मानवता दोनों के लिए खतरनाक संकेत है।
यहां कोई यह नहीं कह रहा कि विराट कोहली की नीयत पर संदेह किया जाए, लेकिन जिस तरह अल्लू अर्जुन से सवाल पूछे गए, उसी तरह क्रिकेट आयोजन की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। जब आयोजन में भीड़ का नियंत्रण खो जाए, और जान चली जाए, तो लोकप्रियता एक ढाल नहीं बन सकती।
सरकार की यह चुप्पी केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि न्याय की असमानता की मिसाल बनती जा रही है। इससे जनता में यह संदेश जाता है कि प्रभावशाली लोगों के लिए कानून अलग है और आम नागरिकों के लिए अलग। जरूरत है कि सरकार समानता के सिद्धांत पर खरे उतरते हुए हर ऐसी घटना में निष्पक्ष और सख्त कदम उठाए। चाहे वह आयोजन किसी फिल्म स्टार का हो या खिलाड़ी का — जब जान जाती है, तो हर मौत बराबर होनी चाहिए। यदि आज हम इस दोहरे मापदंड पर सवाल नहीं उठाएंगे, तो कल न्याय केवल प्रभावशाली लोगों की बपौती बनकर रह जाएगा। और तब लोकतंत्र सिर्फ नाम का बचेगा, उसकी आत्मा मर चुकी होगी।
(यह लेख समाज में न्याय, समानता और सार्वजनिक जवाबदेही को लेकर एक विमर्श प्रस्तुत करता है। यदि आपके विचार अलग हों, तो हमें लिख भेजिए।)
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