अंबिकापुर, 17 जून 2025
कहा जाता है कि “कानून सबके लिए बराबर होता है”, लेकिन जब मामला रसूखदारों का हो, तो यह बराबरी अक्सर ताक पर रख दी जाती है। अंबिकापुर से सामने आए एक वायरल वीडियो ने एक बार फिर इस कहावत की सच्चाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
वीडियो में एक नीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी नजर आती है। बोनट पर बैठी एक महिला जन्मदिन का केक काट रही है। गाड़ी के दरवाजे खुले हैं और वह चलते हुए दिखाई दे रही है। यह दृश्य महज मनोरंजन नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था के खुलेआम उल्लंघन का प्रतीक बन गया है।
जांच में सामने आया कि यह गाड़ी बलरामपुर के डीएसपी तश्लिम आरिफ की है, और बोनट पर केक काटने वाली महिला कोई और नहीं बल्कि डीएसपी की पत्नी हैं। जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो पुलिस की किरकिरी शुरू हो गई।
‘स्वतंत्र छत्तीसगढ़’ ने जब इस मामले को उठाया और सवाल किए, तब जाकर प्रशासन हरकत में आया। हालांकि कार्रवाई के नाम पर जो कुछ हुआ, वह भी खुद एक बड़ा सवाल बन गया है। एफआईआर तो दर्ज हुई, लेकिन उसमें न तो डीएसपी की पत्नी का नाम है, न ही किसी जिम्मेदार अधिकारी का। उल्टा, गाड़ी के ड्राइवर को ‘अज्ञात’ आरोपी बताकर खानापूर्ति कर दी गई।
क्या यह है “इक्वल जस्टिस”?
अगर इस वीडियो में डीएसपी की पत्नी की जगह कोई आम नागरिक होता, तो क्या पुलिस की यही नर्म रवैया रहता? क्या उसे भी अज्ञात कहकर छोड़ा जाता? शायद नहीं।
यह घटना सिर्फ एक नियम उल्लंघन नहीं, बल्कि कानून के साथ हुए भेदभाव और पक्षपात का उदाहरण है। यह दर्शाता है कि सिस्टम में ओहदे और पहचान की ताकत, आम नागरिक के लिए बने कानूनों को कैसे बौना बना देती है।
अब सवाल यह है कि क्या इस मामले में निष्पक्ष जांच होगी? क्या कानून की आड़ में ताकतवरों को ढाल मिलती रहेगी? और सबसे बड़ा सवाल—क्या कानून सच में सबके लिए बराबर है?
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