हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को भी रद कर दिया है।

बिलासपुर: 15 मार्च 2023 (प्रतिनिधि )

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पेश अपील पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। जस्टिस पी सैम कोशी की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में भारतीय दंड विधान की धारा 201 की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि एक बार हत्या के अपराध के संबंध में अभियोजन के प्रकरण को स्वीकृत नहीं किया जाता है तो इसका मतलब यह है कि भारतीय दंड विधान की धारा 201 के अधीन अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि उस अपराध से संबंधित साक्ष्य एक समान है। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है।

दुर्ग जिले के ग्राम धौंराभाठा निवासी लालाराम यादव ने अपने वकील के जरिए निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। 28 अप्रैल 2004 को सह आरोपित चित्ररेखा ने अपीलार्थी के साथ मिलकर पति अनिस्र्द्ध की हत्या कर दी थी। इसके बाद दोनों आरोपितों ने अनिरुद्ध के शव को खेत की बाउंड्री में छिपा दिया था। शव को छिपाने के बाद चित्ररेखा ने पति के लापता होने की शिकायत थाने में दर्ज कराई। खोजबीन के बाद पांच मई 2004 को पुलिस ने खेत से शव को बरामद किया। संदेह के आधार पर दोनों आरोपितों के खिलाफ भादवि की धारा 302,34 व 201, 34 के तहत एफआइआर दर्ज कर जेल भेज दिया। मामले की सुनवाई निचली अदालत में हो रही थी। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने 26 गवाहों का परीक्षण कराया। फैसले में कोर्ट ने पाया कि जहां तक धारा 302 आइपीसी के तहत अपराध का संबंध है, अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे मामले को साबित करने में विफल रहा है। हालांकि निचली अदालत ने दोनों आरोपितों को स्वतंत्र रूप से आइपीसी की धारा 201 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया है। जुर्माना और पांच साल की सजा सुनाई है। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए लालाराम ने हाई कोर्ट में अपील पेश की।अपीलकर्ता के वकील ने कोर्ट के समक्ष पैरवी करते हुए कहा किमुख्य अपराध के तहत किसी भी सजा के अभाव में, जो कि मौजूदा मामले में आइपीसी की धारा 302 थी। आइपीसी की धारा 201 के तहत स्वतंत्र रूप से कोई सजा नहीं हो सकती है। वकील ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता पहले ही एक वर्ष 10 महीने 20 दिन से अधिक की जेल की सजा काट चुका है। अगर किसी भी कारण से यह न्यायालय इस तर्क से सहमत नहीं है कि आइपीसी की धारा 201 के तहत अपराध स्वतंत्र रूप से टिकाऊ नहीं है, तो सजा का हिस्सा अपीलकर्ता द्वारा पहले से ही की गई अवधि तक कम किया जा सकता है।

राज्य सरकार ने अपील का किया विरोध:

राज्य के वकील ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां मृतक सह-आरोपित चित्ररेखा का पति था। यह आरोप लगाया गया है कि चित्ररेखा का अपीलकर्ता के साथ विवाहेतर संबंध था। अपीलकर्ता और चित्ररेखा ने मृतक की हत्या की थी और शव को खेत में गाड़ दिया था। शव को खेत में दफनाने में उसकी भूमिका रही है। लिहाजा आइपीसी की धारा 201 के तहत सजा को दोषपूर्ण नहीं कहा जा सकता है और न ही इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।